परमाणु संरचना के पिछले लेख में जाना था कि बोर का परमाणु मॉडल क्या था और कैसे इसने रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियों को दूर किया। आज के इस लेख में हम मुख्य तौर पर hydrogen spectrum kya hai के बारे में जानेंगे जैसा कि हमने जाना था कि जब हाइड्रोजन का स्पेक्ट्रम बनाया जा रहा था तो इसमें कुछ रेखाएं आ रही थी जिससे कि यह पता चल रहा था कि हाइड्रोजन का स्पेक्ट्रम सतत नहीं है।

जैसा कि हमने बोर मॉडल में जाना कि परमाणु की हर एक ऊर्जा स्तर (energy level) की एक निश्चित त्रिज्या (r) और ऊर्जा होती (E) है। इसी के साथ उन ऊर्जा स्तरों में घूम रहे इलेक्ट्रॉन का वेग (v) भी निश्चित होता है।

यह आप याद रखें कि इलेक्ट्रॉन के पास जितनी कम ऊर्जा होगी उतना ही वह स्थायी होगा। क्योंकि इलेक्ट्रॉन के पास जितनी ज्यादा ऊर्जा होगी उतना ही वह इधर-उधर भागेगा और अस्थाई रहेगा। जब भी इलेक्ट्रॉन स्थिर वैद्युत बल (आकर्षण) की वजह से नाभिक् के पास जाएगा तो वह ऊर्जा को मुक्त करेगा और स्थाई हो जाएगा। वह ऊर्जा होगी:

En = -13.6 x z²/ n² ev ( z = परमाणु संख्या या एटॉमिक नंबर, n = ऊर्जा स्तर या एनर्जी लेवल)

यह – साइन का तात्पर्य यही है कि उर्जा निकल रही है यानी इलेक्ट्रॉन जब नाभिक के पास आ रहा है तो वह ऊर्जा को मुक्त कर रहा है और स्थायी हो रहा है। अगर हम हाइड्रोजन के परमाणु के लिए अलग-अलग एनर्जी लेवल निकले तो वह इस प्रकार होगें:
E1 = -13.6 x 1²/ 1¹ = -13.6 ev ( हाइड्रोजन के पहेले ऊर्जा स्तर की ऊर्जा)

E2 = -13.6 × 1 / 2² = -3.4 ev

E3 = -13.6 × 1 / 3² = –1.51 ev

E4 = -13.6 × 1 / 4² = -0.85 ev

इसमें यह देख सकते हैं कि जैसे-जैसे इलेक्ट्रॉन नाभिक से दूर जा रहे हैं; इसकी ऊर्जा बढ़ती जा रही है। -0.85 > -1.51> -3.4 > -13.6। यानी इलेक्ट्रॉन की परमाणु से निकलने की प्रवृत्ति (संभावना, tendency) आसान होती जा रही है। अगर हम अनंत (इंफिनिटी, n=infinity ; 1/infinity = 0) की बात करें तो यह ऊर्जा जीरो हो जाएगी यानी इलेक्ट्रॉन नाभिक से मुक्त हो चुका है। यानी अब इस समय पर इलेक्ट्रॉन पर नाभिक का कोई भी प्रभाव नहीं है।

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम किसे कहते हैं?

जब हाइड्रोजन गैस को विद्युत या प्रकाश के माध्यम से अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान की जाती है। तो हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन इस ऊर्जा को प्राप्त करके उच्च ऊर्जा स्तर में चले जाते हैं। वहां लगभग 10‐8 सेकंड रहने के बाद जब इलेक्ट्रॉन अपनी मूल ऊर्जा स्तर में वापस आते हैं। तो वह अवशोषित की गई ऊर्जा को विकिरण के माध्यम से छोड़ते हैं जो हमें हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम के रूप में दिखता है।

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम सतत क्यों नहीं आ रहा था?

अगर मान ले कि परमाणु को गर्म किया जा रहा है यानी उसे ऊर्जा दी जा रही है। यह ऊर्जा इलेक्ट्रॉन लेगा और उच्च ऊर्जा स्तर पर जाएगा। हाइड्रोजन के लिए पहली ऊर्जा स्तर -13.6 ev (n=1) और दूसरा -3.4 ev (n=2) है।

यहां ध्यान दें कि इलेक्ट्रॉन -13.6 ev से सीधा -3.4 ev पर जाएगा। ऐसा नहीं हो सकता कि पहले यह -13.3 पर जाए फिर -13.2 फिर -10.6 फिर -3.8; बल्कि सीधा ही -3.4 ev ऊर्जा लेगा और दूसरी ऊर्जा स्तर में जाएगा। इस परिस्थिति में n1 से ले n2 तक जाने के लिए सिर्फ एक रेखा मिल सकती है। क्योंकि इन दोनों के बीच में एक ही ऊर्जा स्तर उपलब्ध है।

अगर मान ले की -13.6 के बाद -13.3 , -13.2, 13.1 , -13.0 तो जो हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम मिलता है वह सतत यानी कंटीन्यूअस होता।

तो रदरफोर्ड मॉडल में हम सोच रहे थे की इलेक्ट्रॉन लगातार नाभिक के चारों ओर घूम रहा है। और ऊर्जा की हानि कर रहा है; जिससे सतत स्पेक्ट्रम मिलना चाहिए। लेकिन बोर के मॉडल में हमने जाना की इलेक्ट्रॉन निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगा रहा है। और इन चक्कर के दौरान ना ही वह ऊर्जा की हानि कर रहा है और ना ही ग्रहण । बल्कि जब उसे ऊर्जा दी जा रही है तो वह अपना कक्ष छोड़कर ऊपर वाले कक्ष में जाता है। वहा कुछ समय रहने के बाद इलेक्ट्रॉन वापस अपनी कक्षा में आता है जिसके दौरान वह विकिरण (रेडीऐशन) के रूप में ऊर्जा को छोड़ता है जिससे हमें हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम पर रेखा देखने को मिलती है।

अगर मान ले की परमाणु में पांच ऊर्जा स्तर है जो की n1, n2, n3 n4, n5 से दिखाए गए हैं। तो अगर इलेक्ट्रॉन को इतनी ऊर्जा दे कि वह सीधा ही n1 से n5 तक पहुंच गया । तो वहा कुछ देर रहने के बाद वापिस n1 में आएगा। लेकिन वह सीधा भी n5 से n1 में आ सकता जिसमें वह एक तरंग छोड़ेगा और एक रेखा देखने को मिलेगी या फिर वह n5 से n4 आएगा और उसके बाद फिर n4 से n1 आएगा जिसमें दो रेखा देखने को मिलेगी।

ऐसा भी हो सकता है की इलेक्ट्रॉन पहले n5 से n4, फिर n4 से n3 आए, फिर n3 से न 2 आए फिर N2 से n1 आए जिसमें की 4 अलग-अलग रेखाओं देखने की मिलेगी।

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम का चित्र

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की खोज किसने की थी?

नील्स बौहर ने हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की खोज की थी। जिसके लिए उन्होंने एक कांच की नली (ग्लास ट्यूब) को बेहद कम दबाव और उच्च स्तर के विद्युत से जोड़ा। गैस ट्यूब में हाइड्रोजन गैस भरी हुई थी। उच्च विद्युत और कम दबाव करने पर गैस ट्यूब में एक तीखा लाल रंग का प्रकाश देखने को मिला और जब इस प्रकाश को प्रिज्म से गुजारा गया तो कुछ रेखाएं देखने को मिली; कहीं जगह यह रेखाएं ज्यादा थी और कहीं पर कम थी।

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अब सवाल यह था कि यह रेखाएं कहां से आई? तो बोर ने सोचा कि हाइड्रोजन में सिर्फ एक नाभिक और एक इलेक्ट्रॉन होता है। लेकिन हाइड्रोजन में उच्च ऊर्जा स्तर (कक्ष, orbits) भी होते हैं। जब इलेक्ट्रॉन को ऊर्जा दी जाएगी तो वह उच्च ऊर्जा स्तर पर जाएगा। किस ऊर्जा स्तर पर जाएगा यह दी जाने वाली ऊर्जा पर निर्भर करता है कि वह कितनी है। कुछ समय वहां रहने के बाद जब इलेक्ट्रॉन वापस अपने ऊर्जा स्तर में आएगा तो वह कुछ तरंगे प्रकाश के रूप में छोड़ेगा जिसको प्रिज्म (खास तरह का शीशा) से गुजरने पर स्पेक्ट्रम प्राप्त होगा। इस सब के आधार पर एक ग्राफ का निर्माण हुआ जिसे हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम कहा जाता है।

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ऊपर वाले ग्राफ में 1,2,3,4… का अर्थ हाइड्रोजन के विभिन्न ऊर्जा स्तर है जिसे n के माध्यम से दिखाया गया है। अगर n1 = 1 है तो n2 उससे उच्च ऊर्जा स्तर होंगे जो की 2 3 4 5 6 7 हो सकते हैं वहीं अगर n1 = 3 है तो n2 उससे उच्च ऊर्जा स्तर 4 5 6 7 हो सकते हैं।

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हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की श्रेणियां

  • लाइमैन श्रेणी: जब n1 की संख्या 1 होती है तो उससे मिलने वाली तरंगदैर्ध्य (वेवलेंथ) लाइमैन सीरीज में आती है। यहां n2 की संख्या 2,3,4,5,6… हो सकती है। या जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से पहले ऊर्जा स्तर में आता है तो उसे मिलने वाली श्रेणी को लेमन श्रेणी कहा जाता है।
  • बामर श्रेणी: जब n1 की संख्या 2 होती है तो उससे मिलने वाली वेवलेंथ बामर श्रेणी में आती है। यहां n2 की संख्या 3,4,5,6… हो सकती है। या जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से दूसरे ऊर्जा स्तर में आता है। आईए अब जनाते है पाश्चन श्रेणी से आप क्या समझते हैं?
  • पाश्चन श्रेणी: जब n1 की संख्या 3 होती है तो उससे मिलने वाली वेवलेंथ पाश्चन श्रेणी में आती है। यहां n2 की संख्या 4,5,6… हो सकती है। या जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से तीसरे ऊर्जा स्तर में आता है।
  • ब्रैकेट श्रेणी: जब n1 की संख्या 4 होती है तो उससे मिलने वाली वेवलेंथ ब्रैकेट श्रेणी में आती है। यहां n2 की संख्या 5,6,7… हो सकती है। या जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से चौथे ऊर्जा स्तर में आता है।
  • फुंड श्रेणी: जब n1 की संख्या 5 होती है तो उससे मिलने वाली वेवलेंथ फुंड श्रेणी में आती है। यहां n2 की संख्या 6,7… हो सकती है। या जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से पांचवें ऊर्जा स्तर में आता है।

जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर (2,3,4,5,6…) से पहले ऊर्जा स्तर (1) पर आता है तो प्रकाश के माध्यम से जो स्पेक्ट्रम मिलता है वह लाइमैन श्रेणी का होता है। यह पराबैंगनी किरणें (UV Rays) पैदा करती है।

जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर (3,4,5,6…) से दूसरे ऊर्जा स्तर (2) पर आता है तो प्रकाश के माध्यम से जो स्पेक्ट्रम मिलता है वह बारमर श्रेणी का होता है। यह दृश्य किरणें (visible Rays) पैदा करती है। जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से (3,4,5) ऊर्जा स्तर पर आता है; वहां अवरक्त किरणें (Infrared Rays) पैदा होती है।

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की व्याख्या कीजिए (FAQs)

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की कौन सी श्रेणी अवरक्त भाग में नहीं पड़ती है?

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम में लाइमैन श्रेणी और बामर श्रेणी अवरक्त भाग (इंफ्रारेड रीजन) में नहीं पड़ती है। पाश्चन, ब्रैकेट और फुंड श्रेणी अवरक्त भाग में पड़ती है। वही लाइमैन पराबैंगनी भाग और बामर दृश्य भाग (विजिबल रीजन) में पढ़ती है।


हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की कौन-सी श्रेणी दृश्य भाग में पड़ती है ?

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम में बामर श्रेणी वर्ष भाग में पड़ती है जिसकी तरंगदैर्ध्य (वेवलेंथ) 400 नैनोमीटर से 700 नैनोमीटर तक होती है। तथा लाइमैन श्रेणी पराबैंगनी भाग और पाश्चन, ब्रैकेट और फुंड श्रेणी अवरक्त भाग में पड़ती है।


हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम में बामर श्रेणी किसे कहते हैं?

हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम में, बामर श्रेणी को “बाल्मेर सीरीज” भी कहा जाता है। इसे बाल्मेर ने सन 1885 में पहले बताया था। बामर श्रेणी हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉन के विभिन्न ऊर्जा स्तरों के साथ संबंधित है, जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से दूसरे ऊर्जा स्तर में आता है तो वह विभिन्न तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) वाली लाइट को उत्सर्जित करता है जिससे बामर श्रेणी कहते है। इस सीरीज का अध्ययन हाइड्रोजन और हाइड्रोजन से उत्पन्न आइजोटोपों के स्थितियों की अच्छी तरह से समझने में मदद करता है और इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा स्तरों को पहचानने में सहायक है।

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