11वीं कक्षा के रसायन विज्ञान का यह तीसरा विषय है जो की तत्वों के वर्गीकरण पर केंद्रित है। पिछले भाग में हमने परमाणु संरचना जिसमें मुख्य तौर पर इलेक्ट्रॉन की खोज, रदरफोर्ड, नील्स बोर और थॉमसन का परमाणु मॉडल देखा था। केमिस्ट्री को विभिन्न भागों में बांटा हुआ है जिसमें से इनऑर्गेनिक केमिस्ट्री, ऑर्गेनिक केमिस्ट्री और फिजिकल केमेस्ट्री मुख्य हैं। 11वीं कक्षा में इनऑर्गेनिक यानी अकार्बनिक रसायन की शुरुआत इस विषय से होती है।

तत्वों के वर्गीकरण की आवश्यकता ( classification of elements in Hindi)

सन 1800 तक केवल 31 तत्वों के बारे में जानकरी थी। तो इनको एक जगह रखना और अध्ययन करना आसान था। तो इस समय पर तत्वों की वर्गीकरण की कोई आवश्यकता नहीं थी।

परंतु धीरे-धीरे सन 1865 तक ओर नए तत्वों की खोज हुई और इनकी संख्या बढ़कर 63 हो गई। अब ऐसे में तत्वों के वर्गीकरण की आवश्यकता पड़ी जिससे इन तत्वों को एक जगह लाया जा सके और इनका अध्ययन करना आसान हो सके। क्योंकि इतने सारे तत्वों और उनके यौगिक का अध्ययन अलग-अलग करना काफी कठिन था।

वर्गीकरण का अर्थ होता है जो तत्व रासायनिक भौतिक गुण में समान होते हैं उन्हें एक स्थान अर्थात एक ही समूह में रखा जाएगा। जिससे किसी एक समूह के एक तत्व का अध्ययन करने पर हमें बाकी तत्वों के गुणों के बारे में जानकारी मिलेगी। इन सब मुश्किलों को दूर करने के लिए अलग-अलग समय पर विभिन्न वैज्ञानिकों ने तत्वों को वर्गीकरण करने के लिए अनेक प्रकार के मॉडल दिए।

आवर्त सारणी की उत्पत्ति ( periodic table in Hindi)

तत्वों का वर्गीकरण करने के लिए अनेकों प्रकार के नियम और मॉडल का आविष्कार किया गया। प्रारंभिक रूप में डोबेराइनर त्रिक (Dobereiner’s triads) ने अपने नियमों के आधार पर तत्वों का वर्गीकरण किया।

डोबेराइनर त्रिक (Dobereiner’s triads)

डोबेराइनर ने उस समय में जितने तत्वों की खोज हो चुकी थी उन सब को सामान गुणधर्म के आधार पर तीन-तीन तत्वों के समूह में व्यवस्थित कर दिया जिसे त्रिक (triads) का नाम दिया गया। त्रिक बनाने के लिए उन्होंने जो नियम लिया वह था कि मध्य वाले तत्व का परमाणु भार सिरे वाले तत्वों के परमाणु भार का माध्य (औसत, mean) था। इस नियम द्वारा वह कुछ ही त्रिक बना पाए थे।

डोबेराइनर ने तत्वों को परमाणु द्रव्यमान को बढ़ते क्रम के आधार पर सामान गुणधर्म वाले तत्वों को तीन-तीन समूह में व्यवस्थित किया जिन्हें त्रिक बोला गया। त्रिक में मध्य में रखे हुए तत्व का परमाणु भार सिरे वाले तत्वों का माध्य था।

Mb (बीच वाले तत्व का द्रव्यमान) = Ma (पहले तत्व का द्रव्यमान) + Mc (अंतिम तत्व का द्रव्यमान) / 2

उदाहरण के लिए लिथियम और पोटेशियम के द्रव्यमान का माध्य बीच वाले तत्व यानी सोडियम के बराबर आ रहा है। इसी प्रकार आप अन्य त्रिक भी देख सकते हैं। इस प्रकार डोबेराइनर कुछ त्रिक बनाने में सफल रहे थे।

पहला तत्वबीच वाला तत्वअंतिम तत्वमाध्य
Li
(परमाणु भार= 7 )
Na
(परमाणु भार= 23 )
K
(परमाणु भार= 39)
Na = 7+39/2 = 23
Cl
(35.5)
Br
(80)
I
(127)
Br = 35.5 + 127 /2 = 81.25
Ca
(40)
Sr
(80)
Ba
(137)
Sr = 40 + 137/2 = 88.5

डोबेराइनर त्रिक की कमियां

इस नियम की सबसे बड़ी कमी यह थी कि यह सिर्फ 9 तत्वों का ही वर्गीकरण कर पाया था। जबकि उस समय कुल 31 तत्वों का की खोज हो चुकी थी।

न्यूलैंड का अष्टक नियम ( newland Octave law in Hindi)

1864 में न्यूलैंड ने तत्वों का वर्गीकरण इस प्रकार किया कि जब तत्वों को उनके परमाणु भार के बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित करेंगे तो प्रत्येक आठवें तत्व के गुण पहले तत्व के समान होंगे। इन 8 तत्वों के समूह को अष्टक (Octave) कहते हैं। इसे उदाहरण समझे तो जैसे संगीत में पहला और आठवां स्वर समान होता है वैसे ही इसमें पहले और आठवें तत्व के गुण समान होंगे।

जैसे संगीत में ” सा रे गा मा पा धा नि ” के बाद फिर से ” सा रे गा मा.. ” का क्रम शुरू होता है। वैसे ही पहले तत्व के बाद हर 8वां तत्व पहले तत्व के समान गुणधर्म वाला होगा। इस नियम के आधार पर उन्होंने इन तत्वों का वर्गीकरण किया।

Li Be B C N O F Na
Na Mg Al Si P S Cl K

पहले तत्व में लिथियम (Li) को रखा गया है और इसके आठवें स्थान पर तत्व सोडियम (Na) को रखा गया है और इन दोनों के गुणधर्म समान होते हैं। क्योंकि लिथियम भी क्लोरीन (Cl) से मिलकर लिथियम क्लोराइड (LiCl) बनता और सोडियम भी क्लोरान से मिलकर सोडियम क्लोराइड (NaCl) बनता है। इसी प्रकार बेरिलियम (Be) से चले तो आठवें स्थान पर मैग्नीशियम (Mg )आएगा और इन दोनों के गुणधर्म समान होते हैं।

न्यूलैंड का अष्टक नियम की कमियां

  • इस समय तक अक्रिय (Inert) गैस (वह गैस जो किसी तत्व के साथ रासायनिक अभिक्रिया नहीं करती ) की खोज नहीं हुई थी।
  • इस नियम के आधार पर न्यूलैंड सभी तत्वों को वर्गीकृत नहीं कर पाए थे। क्योंकि यह सिर्फ कैल्शियम जिसका परमाणु भार 40 है वही तक ही तत्वों को वर्गीकरण कर पा रहे थे; उसके बाद इनका यह वर्गीकरण का सिद्धांत विफल हो रहा था।

लोथर मेयर वक्र

अभी तक अपने जाना की डोबेराइनर और न्यूलैंड का अष्टक नियम के माध्यम से तत्वों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा रहा था। लेकिन उनकी सीमाएं यह थी कि यह कुछ ही तत्वों को वर्गीकृत कर पा रहे थे। इसी के बीच लोथर मेयर वक्र सामने आया जोकी तत्वों को नए नियम के आधार पर वर्गीकृत कर रहा था।

लोथर मेयर वक्र (Lothar Meyer curve in Hindi)

यह वक्र परमाणु भार और परमाणु आयतन के बीच में बनाया गया था। नीचे दी गई फोटो में देख सकते हैं जैसे-जैसे परमाणु भार बढ़ता जा रहा है; परमाणु आयतन कभी बढ़ रहा है और कभी कम हो रहा है। लोथर मेयर वक्र के माध्यम से यह साबित हो रहा था कि एक जैसी स्थिति पर एक समान गुणधर्म वाले तत्व मौजूद होंगे।

  • लोथर ने पाया कि इस वक्र की चोटी पर जितने भी तत्व आ रहे हैं यानी लिथियम, सोडियम, पोटेशियम, रूबेडियम, और सीसियम; यह सभी सामान गुणधर्म वाले हैं।
  • वक्र में ऊपर जाने वाले रेखा यानी आरोही स्थितियों पर जो तत्व मिले वह क्लोरीन, फ्लोरीन, ब्रोमीन, आयोडीन थे; जिनका गुणधर्म समान होता है।
  • वक्र में नीचे वाली रेखा; अवरोही स्थितियों पर जो तत्व मिल रहे थे वह बेरिलियम, मैग्निशियम, कैलशियम, स्ट्रोटीम के गुणधर्म भी समान थे।

मंडलीफ की आवर्त सारणी

मंडलीफ की आवर्त सारणी मंडलीफ के आवर्त नियम पर आधारित है। यह नियम कहता है कि तत्वों के भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्म उनके परमाणु द्रव्यमनों के आवृत्ति फलन होते हैं। लोथर मेयर वक्र में देखें तो परमाणु भार को जैसे-जैसे बढ़ा रहे हैं तो से सामान गुणधर्म वाले तत्व दोहरा रहे हैं।

इस विषय को आगे पढ़ने के लिए और मंडलीफ की आवर्त सारणी को विस्तार में समझने के लिए अगले लेख पर जाएं।

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