रदरफोर्ड के अल्फा किरण प्रयोग के बाद कुछ सालों तक इस परमाणु संरचना मॉडल को माना गया। लेकिन समय के साथ जब नई चीजों की खोज हुई वह रदरफोर्ड के मॉडल से मिल नहीं खा रही थी। कुछ ऐसी चीजें भी थी जो रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल सिद्ध नहीं कर पा रहा था। जिसमें सबसे मुख्य था कि इलेक्ट्रॉन के पास नाभिक की परिक्रमा करने के लिए ऊर्जा खत्म क्यों नहीं हो रही थी; जबकि इलेक्ट्रॉन एक ऋणात्मक आवेश कण है। नील बोहर का परमाणु मॉडल क्या है? यह जानने के लिए आपको रदरफोर्ड मॉडल की कमियां या दोष पता होनी चाहिए।

रदरफोर्ड मॉडल के दोष

अल्फा किरण प्रयोग के माध्यम से रदरफोर्ड ने यह बात सिद्ध करदी थी कि धनात्मक आवेश पूरे परमाणु में फैला नहीं हुआ है। बल्कि एक जगह सीमित है; जिसे नाभिक (न्यूक्लियस) कहते हैं।। वही जेजे थॉमसन का परमाणु मॉडल धनात्मक आवेश को पूरे परमाणु में समान रूप से वितरित मान रहा था।

  • इस मॉडल में ऋणावेशित इलेक्ट्रोन धणावेशित नाभिक के चारों ओर वृताकार कक्षाओं में चक्कर लगा रहा है। तो ऋणावेशित इलेक्ट्रोंस नाभिक में गिर क्यों नहीं जाते इसके लिए रदरफोर्ड बताया कि इलेक्ट्रोन पर लगने वाला अपकेंद्रीय बल नाभिक के आकर्षण बल को संतुलित कर रहा होता है।
  • मैकेनिक मैक्सवेल के विकिरण सिद्धांत के अनुसार जब आवेशित कण तर्वित होता है। तो वह विद्युत चुंबकीय वीवीकरणों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन करता है। अर्थात इलेक्ट्रोन की ऊर्जा लगातार कम हो रही है और अतः में वह नाभिक के ऊपर गिर जाएगा। लेकिन हम जानते हैं परमाणु स्थाई होता है। इसलिए रदरफोर्ड का यह परमाणु मॉडल परमाणु की स्थायित्वा नहीं बता सका और अस्वीकार कर दिया गया।
  • यह मॉडल हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की विभिन्न स्पेक्ट्रमी रेखाओं के अस्तित्व को भी नहीं समझ सका।

बोर के परमाणु मॉडल के विकास की पृष्ठभूमि

सन् 1913 में नील बोहर ने नई खोजों के पिरमाणों का उपयोग करके रदरफोर्ड द्वारा प्रतिपादित मॉडल में सुधार किया जिसे बोर का परमाणु मॉडल कहा गया। इसके लिए बोर ने कुछ परिकल्पनाए (postulates) बनाई जिससे रदरफोर्ड के मॉडल की कमियां दूर हो जाएगी।

जैसा कि रदरफोर्ड ने कहा गया था कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृताकार कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं और यह कक्षा कहीं भी हो सकती है। लेकिन बोहर ने इसे थोड़ा सा बदलकर कहा कि यह निश्चित वृताकार कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं। निश्चित होने का मतलब है हर एक कक्षा की निश्चित त्रिज्या है जैसे पहली कक्षा को हम r1: कह देते हैं, उससे अगली त्रिज्या भी निश्चित है: r2, और इन कक्षाओं की त्रिज्या निर्धारण करने के लिए भी बोर ने फार्मूला दिया। रदरफोर्ड ने कहा था इलेक्ट्रॉन बस घूमते हैं और कहीं भी घूम सकते हैं। लेकिन बोहर ने कहा इलेक्ट्रॉन घूमते तो है लेकिन एक निश्चित कक्षाओं में ही घूमते हैं।

बोर ने बताया हर एक निश्चित कक्षा की एक निश्चित त्रिज्या और एक निश्चित ही ऊर्जा है। रदरफोर्ड ने कहा था कि इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा होती है लेकिन बोर ने कहा ऊर्जा कक्षा की होती है ना की इलेक्ट्रॉन की। उदाहरण के लिए समझे अगर पहले त्रिज्या की ऊर्जा 50 है और दूसरी त्रिज्या की ऊर्जा 100 है तो अगर इलेक्ट्रोन की ऊर्जा 50 है तो वह 50 ऊर्जा वाली कक्षा में घूमेगा।

इसमें आप इतना समझ ले की हर एक कक्षा की ऊर्जा निश्चित है। और जिस इलेक्ट्रॉन के पास उस कक्षा के बराबर ऊर्जा है वही इलेक्ट्रॉन उस कक्षा में घूम सकेगा। नहीं तो वह उस कक्षा की ऊर्जा से कम ऊर्जा वाली कक्षा में घूमेगा।

बोर परमाणु मॉडल के निष्कर्ष

  • इलेक्ट्रोन नाभिक के चारों ओर वृताकार पथ में घूमते रहते हैं; जिन्हें कक्ष (ऑर्बिट) कहा जाता है।
  • प्रत्येक कक्षा की एक निश्चित ऊर्जा होती है और इन्हे ऊर्जा स्तर (energy level) कहते हैं। ऊर्जा स्तरों को 1, 2, 3, 4 या K, L, M, N इत्यादि से व्यक्त किया जाता है।
  • इन निश्चित ऊर्जा स्तरों में घूमते हुए इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा ना ही कम होती है और ना ही इसमें वृद्धि होती है। इलेक्ट्रोन की ऊर्जा क्वाण्टीकृत होती है।
बोर का परमाणु मॉडल का चित्र

ऊपर दिए गए चित्र के A भाग में सलोप वाला ग्राफ बन रहा है यानी इसमें ऊर्जा समय के साथ कम हो रही है और अंत में जीरो की तरफ बढ़ रही है। वहीं दूसरे ग्राफ में ऊर्जा स्तरों को सीढीयों की तरह मान सकते हैं। अगर हमने इलेक्ट्रोन एक सीडी के ऊपर रख दिया है तो यह जरूरी नहीं है कि वह नीचे गिरेगा बल्कि वहीं अपनी ऊर्जा में खड़ा रहेगा लेकिन अगर यह एक कदम नीचे गिर गया तो उसकी उतनी ऊर्जा कम हो जाएगी और वहीं पर स्थिर हो जाएगा। अगर इलेक्ट्रॉन को वापस ऊपर जाना है तो वह उतनी ही ऊर्जा वापस लेकर ऊपर जा सकता है।

तो क्वाण्टीकृत का मतलब यही होता है कि ऊर्जा धीरे-धीरे कम या बढ़ती नहीं है बल्कि यह पैकेट के रूप में एक साथ मिलती है। जैसे परमाणु में दो ऊर्जा स्तर है: दूसरा और तीसरा। अगर इलेक्ट्रोन को दूसरे ऊर्जा स्तर से तीसरे ऊर्जा स्तर में जाना है तो इसको एक निश्चित ऊर्जा प्राप्त करनी होगी जोकि hv के बराबर होती है।

E = HV

बोर का परमाणु मॉडल का चित्र

इसी कारण से इलेक्ट्रोन अपनी ही कक्षा में घूमता रहता है क्योंकि ना ही इसके पास कहीं से ऊर्जा आ रही है और ना ही इसकी ऊर्जा कम हो रही है। इलेक्ट्रोन के कोणीय संवेग (angular momentum) के कुछ निश्चित मान होते है।

करणीय संगेग : mvr = nh/2pi
m = इलेक्ट्रोन का द्रव्यमान
v = इलेक्ट्रोन का वेग
r = इलेक्ट्रोन की त्रिज्या
n = इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा स्तर ( 1, 2, 3,4,..) पहले ऊर्जा स्तर के लिए यह माप h/2pi होगा वही दूसरे ऊर्जा स्तर के लिए 2h/2pi होगा।

शुरुआत में जो ऊर्जा स्तर में इलेक्ट्रॉन होता है वह उसकी सामान्य ऊर्जा स्तर (ground state) होती है। जब इलेक्ट्रोन को बाहर से ऊर्जा प्रदान की जाती है। तो वह इस अतिरिक्त ऊर्जा को प्राप्त करके उच्च ऊर्जा स्तर में कूद जाता है जिसे उत्तेजित अवस्था (excited state) कहा जाता है। अगर हमने hv ऊर्जा दी है तो वह एक उच्च ऊर्जा स्तर पर पहुंच जाएगा। वहीं अगर ऊर्जा 2hv के बराबर दी है तो वह दूसरे उच्च ऊर्जा स्तर में पहुंच जाएगा।

लेकिन इलेक्ट्रोन उस उच्च ऊर्जा स्तर ( एक्साइटिड स्टेट) में हमेशा नहीं रहता बल्कि बहुत ही थोड़े समय बाद लगभग 10-⁸ s समह के बाद अपनी सामान्य ऊर्जा स्तर (ग्राउंड स्टेट) में आ जाता है जिसके दौरान वह विकिरण (रेडिएशन, प्रकाश) छोड़ता है।

इस विकिरण की ऊर्जा hv के बराबर होगी। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि इलेक्ट्रोन जितनी ऊर्जा लेकर उच्च ऊर्जा स्तर में गया होगा जब वह वापस आएगा तो उसे उतनी ही ऊर्जा छोड़नी होगी तभी वह सामान्य ऊर्जा स्तर में आ सकेगा।

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नील्स बोर मॉडल की सफलता

  • बोर परमाणु मॉडल के स्थायित्व को स्पष्ट करता है जो की रदरफोर्ड का मॉडल नहीं कर पा रहा था।
  • बोर सिद्धांत ने हाइड्रोजन व हाइड्रोजन से मिलते-जुलते तत्वों (He, Li) के इलेक्ट्रोन की ऊर्जा की गणना में सहायता प्रदान की।
  • इस मॉडल के माध्यम से हाइड्रोजन के परमाणु स्पेक्ट्रम का स्पष्टीकरण मिल सका। साथी हाइड्रोजन एवं हाइड्रोजन जैसी स्पीशीज के आयनन ऊर्जा की गणना में सहायता प्रदान की।
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